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Forum Posts
Dr prashant Pandey
Feb 27, 2021
In Writing
मैं निर्जर हूं मैं निर्जल हूं मैं एक वीरान मरुस्थल हूं सूरज की अग्नि से तपित बस एक वीरान मरुस्थल हूं ना छाया है ना जलप्रपात ना दूर दूर तक नर या नार एक द्वीप हूं मै सिमटा अपने में अंतहीन पर एकांत है जीव व्यास मुझ में अजीब विषधर है सारे सरीसृप वृक्षों तक ने त्याग दिए छाया धारी रूप सभी कांटों से लाद लिया खुद को मुझ जैसे बस हो गए सभी जलता हूं मैं अग्नि समान जब सूर्य रौब दिखलाता है हिम सा हो जाता हूं शीतल जब मयंक क्षितिज पर आता है तुम हरित लता तुम मृगनयनी हिरनी सा कौतुल करती हो इस रेत के एक-एक कण को तुम जब प्यार से संचित करती हो होता बसंत सा एहसास इस मरुस्थल की बुझती है प्यास मेरे रेत का एक-एक कण आतुर होता तुम्हें पाने को है साहस तो प्रिये पांव धरो मुझ रेत को तुम अपनाने को डाॅ प्रशांत पांडेय
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Dr prashant Pandey
Nov 18, 2020
In Writing
गंभीर है अधीर है, पर चलता रह तू चलता रह । विपत्तियों की वेदना से, मत विचल तू मत विचल । संपूर्णता का दृश्य वो , थी मात्र एक मरीचिका । तू कर चुका विलाप भी , बिलख बिलख बिलख बिलख । बंधनो के पाश से , विमुक्त हो विमुक्त हो । खोल इन भुजाओं को , जो कर रही फड़क फड़क । है अग्नि जो निहित तेरे , दहकने दे धधक धधक। तू स्वर्ण है ना भस्म हो , तू जाएगा निखर निखर । तू भीष्म है , तू भीष्म है ना क्षीण हो , तू रह अटल तू रह अटल । शौर्यता के मार्ग को , तू कर प्रशस्त कर प्रशस्त । तू सिंह है , तू सिंह है दहाड़ कर, तू निःसंकोच वार कर। गगनभेदी है गर्जना तू , है सःशस्त्र है सःशस्त्र । गगनभेदी है गर्जना , तू है सःशस्त्र है सःशस्त्र।
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Dr prashant Pandey
Aug 24, 2020
In Writing
स्तब्ध है निशब्द है सिंह आज निःशस्त्र है । स्तब्ध है निशब्द है जो हो रहा प्रारब्ध है। था अडिग पहाड़ सा सिंह की दहाड़ सा । जो कह दिया उद्घोष था शाश्वत अमिट पाषाण सा । अविरत उन्मुक्त था नीर के प्रवाह सा । वो थम गया सहम गया इस विधा की चाल से । कोटि कोटि गर्व था शीर्ष एक शिखर सा था । निरीह बन के रह गया अधिपति जो जग का था । अब स्थिर है विरक्त है अशांत और तटस्थ है । सिंह आज निःशस्त्र है सिंह आज निःशस्त्र है । स्तब्ध है निशब्द है जो हो रहा प्रारब्ध है।।
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Dr prashant Pandey
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