वो आसमान देख रहे हो ??
हाँ वहीं पर नाम लिखना है अपना मुझे !
वो इमारतें जो तुम देख रहे हो ,
वो बालू, पत्थर, आदि से बनी नहीं ,
इस सफर में मेरे, वो मेरे ही ख्याल है ।
जिनसे गुज़रना होगा मुझे ।
हां यह रास्तों से अनजान हूँ ,
तो कहीं किसी गली में इनके बीच ,
गुम हो सकता हूँ ।
मगर फिर बस समय थोड़ा सा ज़्यादा शायद ;
मैं थोड़ा सा ले लूँ कहीं ।
कोई और तय कर ले शायद इतनी ही दूरी ,
मुझसे काम समय में भी !
मगर, यह तो मेरी मंज़िल है ,
थोड़ी देर से ही सही !
मगर, मैं वहाँ पुहंच जाऊंगा यह तय है ।
हवाएँ शायद जब चले ,
तो थोड़ी धुंदली सी मेरी नज़र हो सकती है ।
मगर फिर भी ,
मैं उस मंज़िल तक पहुंच जाऊंगा !
यह तय है ।
उस खाली से आसमान पर ,
नाम अपना इस जीवन में ,
लिखकर ही जाऊंगा !
यह तय है ।
यह तय है ।।
~~ FreelancerPoet
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Feedbacks are most welcome 🙌
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The view from my terrace , just made me come up with this ... Hope you guys enjoy it ...
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बहुत खू़ब
Lovely view. Lucky you to wake up to this. समझ में आता है कि ये कविता खयाल में क्यूं आया। बेमिसाल।
Worth commendable!
The words speak your heart; one that is sure about achoeving success and I am sure you will.