स्तब्ध है निशब्द है
सिंह आज निःशस्त्र है ।
स्तब्ध है निशब्द है
जो हो रहा प्रारब्ध है।
था अडिग पहाड़ सा
सिंह की दहाड़ सा ।
जो कह दिया उद्घोष था
शाश्वत अमिट पाषाण सा ।
अविरत उन्मुक्त था
नीर के प्रवाह सा ।
वो थम गया सहम गया
इस विधा की चाल से ।
कोटि कोटि गर्व था
शीर्ष एक शिखर सा था ।
निरीह बन के रह गया
अधिपति जो जग का था ।
अब स्थिर है विरक्त है
अशांत और तटस्थ है ।
सिंह आज निःशस्त्र है
सिंह आज निःशस्त्र है ।
स्तब्ध है निशब्द है
जो हो रहा प्रारब्ध है।।
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Strong words..! 👍👍
Shaandaar👌
Khoobsurat! 💙