हाँ माना सिर पर है चूल कम मेरे ;
मगर सिर्फ इस बात पर,
नाजाने गौर तुम हो क्यों कर रहे ?
माना दाग हैं चेहरे पर मेरे ;
मगर खयालों को अपने तुम,
बेदाग क्यों न हो रख रहे ?
के रूप तो ,
तुम्हारा भी, एक दिन ढल ही जाएगा !
तो फिर, रूह को अपनी तुम ,
क्यों यूँ खराब हो कर रहे ?
हाँ सो है गलतियां मुझमें !
मगर सिख कर ज़िंदगी से ,
इनमें सुधार में तो ले आऊँगा ।
सोचो तुम अपनी की ;
जब, न रहेंगी ज़्यादा गलतियाँ मुझमें ,
तो, तुम क्या कमी बताओगे ?
वक़्त की जो यह धूप है ;
जलता उसमें तो,
सिर्फ यह रूप है ।
पर रूह तो ,इसकी कैद से;
हर पल ही सदा आज़ाद है।
आज़ाद रूह पर सवाल कर ;
यूँ न खड़ी करो तुम जंजीरों को !
के वक़्त बदला अगर ;
तो कहीं तुम ही, इनका शिकार बनते हुए ;
पाओगे खुद ही को ।
तो बस रूह को अपनी,
आज़ाद कर तुम चलते रहो ।
राही बन बस,
खुद की खोज में तुम चलो ।
के खुदा जब, कटघरे में खड़ा कर ;
तुमसे, सवाल करता जाएगा ।
तब जवाब दे सको उन्हें !
बस इस लायक तुम बनो ।
बस इतने लायक तुम बनो ।।
©FreelancerPoet
Loved it. 💙