झूठ ....
कभी दूसरों के,
तो कभी खुद के खातिर ;
हाँ , मैंने भी झूठ बोला है !
के सच सुन सके ,
ऐसी, हर किसी में वो बात कहाँ ।
यह दुनिया व्यस्त है ,भागने-दौड़ने में ।
के दो पल ठहर कर ,
पूरी बातें सुन-समझ सके ;
अब वो रिवाज़ जीवित है कहाँ ।
यूँ झूठ तो ,
मैं भी, कहना नहीं चाहता हूँ !
मगर, सच की कड़वाहट सेह सके
अब रिश्तों में, वो बात कहाँ ।
रिश्तों में अब, वो बात कहाँ ।।
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