मुख़्तलिफ़ जरियों में तलाशते तलाशते
गुमराह गए हो तुम कही इस सफर में
मंदिरो में ढूंढते रहे तुम मुझे ,मगर
था बैठा बाहर मैं उन तमाम फकीरो में
अज़ान के बुलावे को नकारते हो तुम हमेशा,
पर निकल पड़ते हो जिहाद की बेबुनियाद
मतलब निकालने,
मैं हमेशा से ईमान में बसता था तुम्हारी,मगर
थकते नही तुम मेरे नाम से बेईमानी करने में
गिरजे में कोरस गाते हो हर शाम तुम
और फिर लग जाते हो बद जुबानी करने में
था मैं वही उस पादरी की भेस में तुम्हारे सामने
पर लग गए तुम मेरी फरमानो की खिल्लियां उड़ाने
मन्दिर-मस्जिदों में मत ढूँडो मुझे,
बस्ता हु मैं तुम्हारे रूह में,ईमान में
मत देखो ख्वाब मेरी उस जन्नत की तुम
जन्नत बना सकते हो खुद इस जहाँ को,
आपसी इत्तेहाद के जरिये से😃।
~उज्ज्वल प्रदीप सरकार
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